दो जिंदगियां जीने वाले श्वेत श्याम महात्मा



महात्मा गांधी ने आजादी हासिल करने के लिए अपने अहिंसक आंदोलन की पूरी अवधि के दौरान स्वच्छता के सपने से देश को जीवंत बनाए रखा। गांधी जी के लिए स्वस्थ्य तन और स्वस्थ्य मन की कहावत में गहरा दार्शनिक संदेश छिपा था। वे स्वच्छता को स्वतंत्रता के आंदोलन का अभिन्न हिस्सा मानते थे।




विश्व का कोई ऐसा देश नहीं होगा जिसने गांधी को अपनाकर अपने मुल्क का विकास न किया हो। गांधी की विश्वव्यापी प्रासंगिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार आदि देशों में सैंकड़ों संस्थाएं गांधी सिद्धांत का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जब पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली, इसके तत्काल बाद जब उनसे यह प्रश्न पूछा गया कि वे किसे अपना आदर्श मानते हैं, उन्होंने तुरंत जवाब दिया- 'गांधी जी को'। आज गांधी जी की 150वीं जयंती पर देश और विदेश में भी जन्मदिवस को धूमधाम से मनाया जा रहा है। 

 


2 अक्टूबर देशभर में "स्वच्छ भारत दिवस" के तौर पर मनाया जा रहा है। इस दौरान स्वच्छता का संदेश देश और दुनिया में पहुंचाया जा रहा है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 अक्टूबर यानी आज पूरे देश को खुले में शौच से मुक्ति का ऐलान करेंगे।

 

स्वच्छता को लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि साफ-सफाई, ईश्वर भक्ति के बराबर है और इसलिए उन्होंने लोगों को स्वच्छता बनाए रखने संबंधी शिक्षा दी थी और देश को एक उत्कृष्ट संदेश दिया था। 

 

आजादी के पहले का वो दौर था जब देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अगुवाई में जब पूरा देश आज़ादी की लड़ाई में जुटा हुआ था तो वो खुद उस वक़्त कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहे थे। अंग्रेजों के यकीन को तो उन्होंने चूर-चूर कर ही दिया था। लेकिन आज़ाद भारत की तस्वीर कैसी होगी और ये किस दिशा में आगे बढ़ेगा, गांधी इस पर भी मनन करते रहे। महात्मा गांधी ने देश के कोने कोने का दौर किया और महसूस किया कि देश तो आज़ाद हो जाएगा। लेकिन एक राष्ट्र के तौर पर उदय के लिए हमें राजनीतिक आज़ादी नहीं बल्कि गंदगी और बीमारियों से स्वतंत्रता चाहिए होगी। इसी सोच के साथ उन्होंने स्वच्छ भारत का सपना देखा। मगर आज़ादी के दशकों बाद भी हम इस सपने को पूरा करने में नाकाम रहे। लेकिन साल 2014 में एक नई ऊर्जा के साथ स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत हुई। आज हम महात्मा गांधी का 150वां जयंती वर्ष मना रहे हैं। हमें यह समझना जरूरी है कि स्वच्छता के बारे में महात्मा गांधी क्या सोचते थे और उन्होंने साफ सफाई को क्यों तरजीह दी। 

 

मैं किसी को गंदे पैर के साथ अपने मन से नहीं गुजरने दूंगा। ये महात्मा गांधी का वो विचार है जो उनके जीवन में स्वच्छता और साफ-सफाई का महत्व साबित करता है। महात्मा गांधी ने हमेशा ही स्वस्थ्य, स्वच्छ और खुशहाल भारत का सपना देखा था। गांधी जी स्वच्छता को जीवन चरित्र का हिस्सा मानते थे और यही वजह थी कि वह कहा करता थे कि अपनी गलती को स्वीकारना झाड़ू लगाने के समान है। जो सतह को चमकदार और साफ कर देता है। स्वच्छता को लेकर महात्मा के विचारों को सभी जानते हैं।  

 

महात्मा गांधी ने आजादी हासिल करने के लिए अपने अहिंसक आंदोलन की पूरी अवधि के दौरान स्वच्छता के सपने से देश को जीवंत बनाए रखा। गांधी जी के लिए स्वस्थ्य तन और स्वस्थ्य मन की कहावत में गहरा दार्शनिक संदेश छिपा था। वे स्वच्छता को स्वतंत्रता के आंदोलन का अभिन्न हिस्सा मानते थे। उन्होंने स्वच्छता को रचनात्मक कार्यक्रम की सूची में शामिल करते हुए उसे स्वाधीनता के अनिवार्य कदम का दर्जा दिया। गांधी जी स्वच्छता की कमी को हिंसक कृत्य का हिस्सा मानते थे। गांधी जी को गंदगी में हिंसा का सबसे घृणित रूप छिपा हुआ दिखता था। यही वो कारण था जिसके चलते वो सामाजिक राजनीतिक दोनों ही तरह की स्वतंत्रता के मार्ग में स्वच्छता और अहिंसा को सहयात्री की तरह मानते थे। 1917 में गांधी जी ने कहा था जब तक हम अपने गांवों और शहरों की स्थितियों को नहीं बदलते और आपने आप को बुरी आदतों से मुक्त नहीं करते व बेहतर शौचालय नहीं बनाते तब तक स्वराज का हमारे लिए कोई महत्व नहीं है।

 

महात्मा गांधी के विवादित प्रयोग

महात्मा गांधी के जीवन में विचित्र विरोधाभास था। महात्मा एक साथ दो जिंदगियां जी रहे थे। अपने सार्वजनिक जीवन में महात्मा की छवि एक कठोर और सिद्धांत प्रिय आदमी की थी। एक ऐसा आदमी जो जिद्दी है और अपनी बात मनवाने के लिए वह किसी भी क्षण अपने प्राण जोखिम में डाल सकता है। उनकी सार्वजनिक छवि एक ऐसे व्यक्ति की थी जो न केवल सत्य और अहिंसा की बात करता है, बल्कि उसका कठोरता से पालन भी करता है। गरीबों का दुख दर्द उनसे देखा नहीं जाता। 

 

लेकिन महात्मा का निजी जीवन इससे बिल्कुल अलग था। उन्हें स्त्रियों का साथ पसंद थी। महात्मा के निजी जीवन में उनकी पत्नी के अलावा कई लड़कियां आईं। उनके आश्रम हमेशा लड़कियों से भरे रहते थे। भारतीय इतिहास का एक जाना-पहचाना चेहरा हैं जो आखिरी दो साल में 'सहारा' बनकर साये की तरह महात्मा गांधी के साथ रही। फिर भी यह चेहरा लोगों के लिए एक पहेली है। 1946 में सिर्फ 17 वर्ष की आयु में यह महिला महात्मा की पर्सनल असिस्टेंट बनीं और उनकी हत्या होने तक लगातार उनके साथ रही। फिर भी मनुबेन के नाम से मशहूर मृदुला गांधी ने 40 वर्ष की उम्र में अविवाहित रहते हुए दिल्ली में गुमनामी में दम तोड़ा।

 

30 जनवरी 1948 की वो तारीख जब 5 बजकर 16 मिनट पर बिरला भवन के पास हमेशा की तरह एक तरफ आभा और दूसरी तरफ मनुबेन का सहारा लिए महात्मा गांधी प्रार्थना के लिए निकले थे। इसी बीच सामने आ गया नाथूराम गोडसे। उसने पहले मनुबेन को धक्का देकर नीचे गिरा दिया था और महात्मा के सीने में उतार दी तीन गोली। मनुबेन ने वो सबकुछ अपनी आंखों के सामने देखा था। वो मनुबेन जो महात्मा गांधी के साथ साए की तरह साथ रहती थी। वो मनुबेन जो गांधी जी के आखिरी दो सालों में उनेक लिए सबकुछ थीं। उनकी देखभाल करने वाली, उनके लिए खाना बनाने वाली और उनके ब्रह्मचर्य के प्रयोग को कामयाब बनाने वाली। अपने चौथे बेटे के जन्म के बाद महात्मा गांधी ने ब्रह्मचर्य का पालन शुरू किया। लेकिन इसे प्रयोग कि कसौटी पर चढ़ाया करीब तीस साल बाद। इस प्रयोग में गांधी से जुड़ी कई महिलाएं शामिल थी। लेकिन मधुबेन इस प्रयोग की सबसे बड़ा हिस्सा थी। गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग का सारा सच मनुबेन अपनी डायरी में दर्ज करती जा रही थी। मनुबेन की डायरी के कुछ अंश

 

10 दिसंबर 1946 श्रीरामपुर, बिहार

आज रात जब बापू, सुशीला बेन और मैं एक ही पलंग पर सो रहे थे तो उन्होंने मुझे गले से लगाया और प्यार से थप-थपाया। उन्होंने ही प्यार से मुझे सुला दिया। उन्होंने लंबे समय बाद मेरा आलंगन किया था। फिर बापू ने अपने साथ सोने के बावजूद यौन इच्छाओं के प्रति मासूम बनी रहने के लिए मेरी प्रशंसा की, लेकिन दूसरी लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हुआ। वीना, कंचन और लीलावती ने मुझसे कहा था कि वे उनके साथ नहीं सो पाएंगी।

 

1 जनवरी 1947 कथुरी, बिहार

सुशीला बेन मुझे अपने भाई प्यारेलाल से शादी करने के लिए कह रही है। उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं उनके भाई से शादी कर लूं तो ही वे नर्स बनने में मेरी मदद करेगी, लेकिन मैंने साफ मना कर दिया और सारी बात बापू को बता दी। बापू ने मुझसे कहा कि कुछ दिन पहले तक वह उनके सामने निर्वस्त्र नहाती थी और उनके साथ सोया भी करती थी। लेकिन अब उन्हें मेरा सहारा लेना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि मैं हर स्थिति में निष्कलंक रहूं और धीरज बनाये रखूं। 

 

2 फरवरी 1947 दसधिरया, बिहार

बापू ने सुबह की प्रार्थना के दौरान अपने अनुयायियों को बताया कि वे मेरे साथ ब्रह्मचर्य का प्रयोग कर रहे हैं। फिर उन्होंने मुझे समझाया कि सबके सामने यह बात क्यों कही। मुझे बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि अब लोगों की जुबान पर ताले लग जाएंगे। मैंने अपने आप से कहा कि अब मुझे किसी की भी परवाह नहीं है। दुनिया को जो कहना है वो कहती है। 

 

28 दिसंबर, 1946 श्रीरामपुर, बिहार 

सुशीलाबेन ने आज मुझसे पूछा कि मैं बापू के साथ क्यों सो रही थी और कहा कि मुझे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। उन्होंने मुझसे अपने भाई प्यारेलाल के साथ विवाह के प्रस्ताव पर फिर से विचार करने को भी कहा और मैंने कह दिया कि मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है, और इस बारे में वे आइंदा फिर कभी बात न करे। मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे बापूजी पर पूरा भरोसा है और मैं उन्हें अपनी मां की तरह मानती हूं।

 

(बता दें कि मनु बेन की यह डायरी नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में सुरक्षित है। जिसे मनु बेन की बहन संयुक्ता बेन की बेटी मीना जैन की सहेली वर्षा दास ने साल 2010 में यहां जमा कराया था।)

 

31 जनवरी 1947 नवग्राम, बिहार

ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर विवाद गंभीर रूप अख्तियार करता जा रहा है। मुझे संदेह है कि इसके पीछे (अफवाहें फैलाने के अम्तुस्सलामबेन, सुशीलाबेन और कनुभाई गांधी के भतीजे) का हाथ था। मैंने जब बापू से यह बात कही तो वे मुझसे सहमत होते हुए कहने लगे कि पता नहीं, सुशीला को इतनी जलन क्यों हो रही है? असल में कल जब सुशीलाबेन मुझसे इस बारे में बात कर रही थी तो मुझे लगा कि वे पूरा जोर लगाकर चिल्ला रही थी। बापू ने मुझसे कहा कि अगर मैं इस प्रयोग में बेदाग निकल आई तो मेरा चरित्र आसमान चूमने लगेगा, मुझे जीवन में एक बड़ा सबक मिलेगा और मेरे सिर पर मंडराते विवादों के सारे बादल छंट जाएंगे। बापू का कहना था यह उनके ब्रह्मचर्य का यज्ञ है और मैं उसका पवित्र हिस्सा हूं। 

 

2 फरवरी 1947 बिहार 

आज बापू ने मेरी डायरी देखी और मुझसे कहा कि मैं इसका ध्यान रखूं ताकि यह अनजान लोगों के हाथों में न पड़ जाए क्योंकि वे इसमें लिखी बातों का गलत उपयोग कर सकते हैं, हालांकि ब्रहमचर्य के प्रयोगों के बारे में हमें कुछ छिपाना नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर अचानक उनकी मृत्यु हो जाए तो भी यह डायरी समाज को सच बताने में बहुत सहायक होगी। उन्होंने कहा कि यह डायरी मेरे लिए भी बहुत उपयोगी साबित होगी।

 

(राष्ट्रीय अभिलेखागार के प्राइवेट रिसर्च अनुभाग में cd acc no. 8, diary 12 से इसे देखा जा सकता है और शुल्क जमाकर इसकी प्रति भी प्राप्त की जा सकती है। )

 

महात्मा गांधी के इस प्रयोग से आहत होकर सरदार पटेल ने 25 जनवरी 1947 को ये पत्र गांधीजी को तब लिखा था। उस पत्र के कुछ अंश...

 

किशोरलाल मशरुवाला, मथुरादास और राजकुमारी अमृत कौर को भेजा आपका पत्र पढ़ा। आपने हमें गहरी यातना में धकेल दिया है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि हमारी पिछली बातचीत के बाद भी आपने ऐसे प्रयोगों को फिर शुरू करने के बारे में कैसे सोचा। हमें लगा था कि इस अध्याय का यहीं अंत हो गया है। परशुराम भरोसेमंद सेवक था। आपने उस पर गलत आरोप लगाया (वह गांधीजी का सेवक था, जिसने उकताकर गांधी का काम छोड़ दिया, उसे उनके ये प्रयोग समझ में नहीं आए)। आप हमारी भावनाओं की कोई परवाह नहीं करते। हम वाकई खुद को असहाय पाते हैं। देवदास भी इससे आहत हुए हैं। हम सब इससे दुख महसूस कर रहे हैं। अगली चर्चा तक, आपको इसे स्थगित कर देना चाहिए। मैं आपकी ओर से हुई इस गलती को समझ नहीं पा रहा हूं।

 

-अभिनय आकाश